गृह कार्य व्यवस्था क्या हैं?
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"गृह-कार्य व्यवस्था से आशय है कि गृह के सभी कार्यों को एक योजना बनाकर किया जाए जिससे समय, धन व श्रम की बचत हो सके।"
प्रत्येक परिवार में असीमित कार्य होते हैं। इसमें अधिकतर कार्यों का संपादन गृहिणी को ही करना पड़ता है। किसी भी कार्य को रोक नहीं जा सकता। अतः गृहिणी की सुविधा के लिए यह आवश्यक हो जाता है। जिन घरों में सभी छोटे-बड़े कार्य गृहिणी का शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ जाता हैं और परिणामस्वरूप घर का वातावरण भी कलेयुक्त बन जाता हैं।
किसी भी कार्य को योजनाबद्ध ढंग से करने की क्रिया को व्यवस्था कहते हैं। ऐसा करने से प्रत्येक कार्य सरलता से हो जाता है तथा समय, धन और श्रम की बचत भी होती है। गृह कार्य व्यवस्था से तात्पर्य है कि घर के सभी कार्यों को इस ढंग से व्यवस्थित करके एवं आक्रमानुसार करना कि जिससे घर के सभी कार्य ठीक समय पर संपन्न हो जाए। साथ ही गृहिणी के समय और शक्ति की बचत हो, घर व्यवस्थित और परिवार सुखी रहे वह घर का वातावरण शांत रहे।
"गृह कार्य-व्यवस्था के अर्थ से आशय की गृह के सभी कार्यों को एक योजना बनाकर किया जाए जिससे समय, धन व श्रम की बचत हो सके।"
गृह कार्य व्यवस्था करते समय निम्नलिखित तत्वों पर ध्यान दिया जाता है-
1. सर्वप्रथम घर के समस्त कार्यों की एक योजना बनानी चाहिए।
2. योजना के अनुसार कार्यों को किया जाना चाहिए।
3. कार्य प्रक्रिया पर पूर्ण नियंत्रण रखना चाहिए।
4. कार्यों को प्राथमिकता के अनुसार करना चाहिए।
5. परिवार के समस्त सदस्यों को उसकी आयु, योग्यता एवं क्षमता के अनुसार कार्य सौंपना चाहिए।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि घर के विभिन्न कार्यों को करने की ऐसी व्यवस्था करना कि सभी गृहकार्य नियमित रूप से तथा सहजता से हो जाये, कार्य-व्यवस्था करना कहलाता है।
कार्य व्यवस्था की सफलता गृहिणी की बुद्धिमानी और कुशलता पर निर्भर करती है।
प्रात: काल से रात्रि तक घर में बहुत से कार्य होते हैं। कार्यों की सीमा बहुत अधिक होती हैं. ऐसे बहुत से कार्य होते हैं जो प्रतिदिन नहीं किया जा सकते हैं, अतः अध्ययन में सुविधा की दृष्टि से गृहकार्यों को निम्नलिखित भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
1. दैनिक कार्य - दैनिक कार्यों में सभी कार्य आते हैं जो गृहिणी द्वारा प्रतिदिन किए जाते हैं। उदाहरण के लिए प्रतिदिन नाश्ता बनाना, भोजन बनाना, घर की सफाई, कपड़े धोना आदि कार्य सम्मिलित है। एक कुशल गृहिणी अपने घर के इन सभी कार्यों को योजनाबद्ध करके बड़ी सहजता से निपटा सकती है।
2. साप्ताहिक कार्य- कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिन्हें प्रतिदिन नहीं किया जा सकता। अतः मैं एक दिन इन कार्यों के लिए निर्धारित किया जाता है। साप्ताहिक कार्य के अंतर्गत पूरे घर की अच्छी तरह सफाई करना, चादर बदलना, धुलने के लिए कपड़े डालना, बच्चों के साथ कुछ समय व्यतीत करना, बाहर घूमने का प्रोग्राम बनाना आदि कार्य आते हैं।
3. मासिक कार्य- कुछ कार्य महीने भर में एक बार किए जाते हैं; जैसे बाजार से महीने भर की खाद्य सामग्री लाना और उन्हें डिपो में भरकर शुभ अवसर करना, बिजली का बिल, बच्चों की फीस जमा करना, गैस सिलेंडर भरवाना आदि आवश्यक कार्य मासिक कार्य के अंतर्गत आते हैं।
4. वार्षिक कार्य- यह कार्य वर्ष में एक बार किए जाते हैं। यह कार्य अधिकतर वर्षा शत्रु के समाप्ति के पश्चात किए जाते हैं। इन कार्यों के अंतर्गत घर के टूट-फूट की मरम्मत, घर की पुताई तथा रंग-रोगन, साल भर का अनाज में तेल खरीदना, अचार, मुरब्बे, चटनी आदि तैयार करना आता है।
5. सामयिक कार्य- कुछ कार्य समय-समय पर करने पड़ते हैं ; जैसे स्वेटर बुनना, ऊनी वस्त्रों को साफ करके रखना, भारी साड़ियों का रखरखाव करना आदि। इन कार्यों को करने में परिवार के सदस्यों का सहयोग लिया जा सकता है।
6. आकस्मिक कार्य- ये कार्य वे होते हैं कि जो अकस्मात् सामने आ जाते हैं; जैसे परिवार में होने वाली शादी विवाह, जन्म-मृत्यु, मित्र या सगे संबंधियों के यहां जाना आदि। गृहिणी को इन कार्यों को संपन्न करने में अपने परिवार के सदस्यों का यथायोग्य सहयोग लेना चाहिए, इससे परिवार के सभी सदस्य सहयोगी बनते हैं तथा सारे कार्य बड़ी सरलता से निपट जाते हैं।
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