परमाणु एवं अणु

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प्राचीन भारतीय एग्रीकल्चर सैनिकों द्रव्य के औकात एवं अदृश्य रूप से सदैव चकित होते रहे पदार्थ की विभाज्यता के मत के बारे में भारत में बहुत पहले लगभग 50 हिंसा पूर्व विचार व्यक्त किया गया था भारतीय दार्शनिक को महर्षि कर्नाड ने प्रतिपादित किया था कि यदि हम धर्म को विभाजित करते जाए तो हमें छोटे-छोटे कारण प्राप्त होते जाएंगे तथा अंत में एक सीमा आएगी जब प्राप्त कान को पुनर्विवाहित नहीं किया जा सकेगा अर्थात वह सुक्तम कारण अभी पहुंचे रहेगा इस अभी भोज्य सुक्तम कारण को उन्होंने परमाणु कहा एक अन्य भारतीय दर्शनी को खुदा का ध्यान ने इस बात को विस्तृत रूप से समझाया तथा कहा कि यह कान समानता संयुक्त रूप में पाए जाते हैं जो अंदर वह के भिन्न-भिन्न एन रूपों को प्रदान करते हैं

लगभग इसी समग्र दार्शनिक को डेमोक्रेसी आई एम लुई पसीने सुझाव दिया था कि यदि हम धर्म को विभाजित करते जाए तो एक ऐसी स्थिति आएगी जब प्राप्त कर को पुनर विभाजित नहीं किया जा सकेगा उन्होंने अभिभावाचक कानों को परमाणु अर्थात अभी भाग्य कहा था यह सभी सुझाव दर्शनी को विचारों पर आधार थे में विचार की वैधता सिद्ध करने के लिए 18वीं शताब्दी तक कोई अधिक प्रयोगात्मक कार्य नहीं हुए थे 18वीं शताब्दी के अंत तक वैज्ञानिकों ने तत्व एवं योगी को के बीच भेद को समझा तथा स्वाभाविक रूप से यह पता करने के चुप हुए के तत्व कैसे जब तत्व परस्पर सहयोग करते हैं तब क्या होता है वैज्ञानिक अंतर लिखिए निरसायनिक संयोजन के दो महत्वपूर्ण नियमों को स्थापित किया जिसने रासायनिक विज्ञान को महत्वपूर्ण आधार प्रदान किया 

 रासायनिक संयोजन के नियम

 लिक ऐप जोसेफ एल पाउडर ने बहुत अधिक प्रयोग कार्यों के पश्चात रासायनिक संयोजन के निम्नलिखित दो नियम प्रतिपादित किया

 




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